अश्वत्थामा – अमरता का श्राप
द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने महाभारत युद्ध के बाद ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु के गर्भस्थ शिशु पर हमला किया। श्रीकृष्ण ने उसे श्राप दिया कि वह अमर रहेगा, परंतु हमेशा दुख और पीड़ा में भटकता रहेगा। शक्ति बिना विवेक के विनाश लाती है।
राजा महाबली – धर्मयुक्त असुर
असुरों के महान राजा महाबली ने वामन अवतार को सब कुछ दान में दे दिया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें सुतल लोक का राजा और अमरता का वरदान दिया। उन्होंने सिखाया कि अहंकार का अंत समर्पण से होता है।
वेदव्यास – शाश्वत ज्ञान के प्रतीकमहाभारत, वेद, पुराणों के रचयिता ऋषि वेदव्यास आज भी हिमालय में तपस्या में लीन हैं। वे ज्ञान के सनातन प्रवाह के संरक्षक हैं। उनका अस्तित्व हमें सिखाता है कि सत्य और ज्ञान कभी नष्ट नहीं होते।
विभीषण – धर्म के लिए परिवार का त्याग
रावण के भाई विभीषण ने अधर्म के विरुद्ध जाकर श्रीराम का साथ दिया। उन्हें लंका का राजा और दीर्घायु का वरदान प्राप्त हुआ। विभीषण सिखाते हैं कि सच्चाई के लिए अपने ही खिलाफ खड़ा होना भी धर्म है।
परशुराम – कल्कि के गुरु
भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने अधर्मी क्षत्रियों का नाश किया। आज वे तपस्या में लीन हैं और भविष्य में कल्कि अवतार को युद्ध की शिक्षा देंगे। जब तक न्याय न हो, तब तक युद्ध उचित है।
मार्कंडेय – श्रद्धा से मृत्यु पर विजय
मार्कंडेय ऋषि ने 16 वर्ष की उम्र में मृत्यु को भक्ति से जीत लिया। शिवलिंग से लिपटकर उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न किया और अमरत्व प्राप्त किया। सच्ची श्रद्धा से भाग्य भी बदला जा सकता है।
कृपाचार्य – युगों तक शिक्षक
महाभारत के काल में पांडवों और कौरवों के गुरु कृपाचार्य को कलियुग के अंत तक जीवित रहने का वरदान मिला। वे अगले युग में सप्तऋषियों में शामिल होंगे। सच्चा ज्ञान समय की सीमाओं से परे होता है।