कर्मियों का धधकता गुस्सा: वर्षों से नहीं बढ़ा वेतन, सुविधाओं पर भी ताले
हुबली में सोमवार से Anganwadi कार्यकर्ताओं व मिड-डे मील (अक्षरदासोहा) कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है।
कर्नाटक राज्य आंगनवाड़ी कर्मचारी संघ और कर्नाटक अक्षरदासोहा कर्मचारी संघ के हजारों सदस्यों ने CITU के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
कर्मियों का कहना है कि
- 2018 के बाद से वेतन वृद्धि नहीं हुई,
- सुविधाएँ आज भी बेहद सीमित हैं,
- और काम के बदले सम्मानजनक मजदूरी नहीं मिल रही।
धरना Pralhad Joshi के कार्यालय के सामने, संदेश सीधा—“हमारी आवाज़ सुनो”
यह बड़ा विरोध Chitaguppi Hospital परिसर स्थित केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के कार्यालय के बाहर शुरू किया गया।
कर्मियों का लक्ष्य है कि उनकी शिकायतें सीधे राज्य व केंद्र दोनों सरकारों तक पहुँचे और नीतिगत बदलाव लाए जाएँ।
कौन-कौन सी मांगें लेकर सड़क पर उतरे कर्मचारी?
1. मिड-डे मील कर्मचारियों को चौथी श्रेणी (Group D) का दर्जा
कर्मियों का कहना है कि वे रोज़ाना हजारों बच्चों को भोजन उपलब्ध कराते हैं, लेकिन उनकी रोजगार स्थिति आज भी अनौपचारिक है।
2. Anganwadi कार्यकर्ताओं को चुनाव ड्यूटी से राहत
उनका तर्क है कि बाल विकास कार्य और पोषण सेवाएँ पहले से ही भारी ज़िम्मेदारी हैं, ऐसे में बार-बार की चुनावी ड्यूटी उन्हें “दोहरे बोझ” में धकेल देती है।
3. स्थायी नौकरी और सामाजिक सुरक्षा
दोनों यूनियनों की मुख्य मांग—
- स्थायी नियुक्ति,
- पेंशन,
- स्वास्थ्य बीमा,
- मातृत्व/मासिक धर्म अवकाश
को तत्काल लागू किया जाए।
4. न्यूनतम वेतन लागू हो, शोषण बंद हो
वर्तमान में:
- वर्कर्स: सिर्फ ₹2,700 प्रतिमाह
- हेल्पर्स: सिर्फ ₹1,350 प्रतिमाह
कर्मियों के अनुसार यह वेतन “मानव गरिमा के खिलाफ” है।
Protest Leaders क्यों नाराज़? — सरकार पर लापरवाही का आरोप
अक्षरदासोहा यूनियन की नेता मलिनी मेस्टा ने कहा कि “प्रस्तावित श्रम शक्ति नीति 2025” में कर्मचारियों को कोई कानूनी लाभ नहीं मिलता, इसलिए इसे रद्द कर नई सुरक्षा नीति लागू होनी चाहिए।
आंगनवाड़ी संघ की उपाध्यक्ष यमुना गावंकार ने याद दिलाया कि पिछले सात सालों से वेतन बढ़ाने पर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।
हड़ताल का असर: पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ सकता है बड़ा प्रभाव
- कई आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों का पोषण कार्यक्रम बाधित हो सकता है,
- गर्भवती महिलाओं को मिलने वाली पोषण सेवाएँ रुक सकती हैं,
- सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील वितरण प्रभावित हो सकता है।
यह स्थिति सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए चिंता का विषय है।
ये भी पढ़े: हुबली में बड़ा फैसला: फ्लाईओवर प्रोजेक्ट अटका, MLA ने पुलिस स्टेशन तुरंत खाली कराने का निर्देश
यह आंदोलन सिर्फ वेतन का मुद्दा नहीं—यह सम्मान और सुरक्षा का संघर्ष
विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंदोलन भारत के उन लाखों श्रमिकों के संकट को उजागर करता है, जो देश के पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य तंत्र को संभालते हैं, लेकिन सालों से कम वेतन, अस्थिर नौकरी और बिना सुरक्षा के काम कर रहे हैं।
यदि सरकार मांगें स्वीकार करती है तो
- बाल पोषण,
- महिला स्वास्थ्य,
- प्राथमिक शिक्षा
जैसी आवश्यक सेवाओं की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बढ़ेगी।
अन्यथा, यह हर वर्ष बड़े सामाजिक संकट की वजह बन सकता है।
निष्कर्ष: सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच बातचीत ही इस संघर्ष का समाधान
कर्मचारी संगठनों ने साफ कहा है कि जब तक
- वेतन संशोधन,
- स्थायी नौकरी,
- और सामाजिक सुरक्षा
का लिखित आश्वासन नहीं मिलता, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।
इस बीच, जनता की नज़रें सरकार की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं—क्या यह ऐतिहासिक आंदोलन कर्नाटक में श्रम नीतियों के नए
अध्याय की शुरुआत करेगा?
ये भी पढ़े: हुब्बल-धारवाड़ में नई पहल: HDMC ने शुरू किया वाटरलेस यूरिनल का पहला चरण, हर माह बचेगा 18,000 लीटर पानी