Sunil Gavaskar के व्यक्तित्व अधिकारों पर दिल्ली हाईकोर्ट सख्त, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कार्रवाई का निर्देश

भारतीय क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी और पूर्व कप्तान Sunil Gavaskar ने अपने व्यक्तित्व और पब्लिसिटी अधिकारों की सुरक्षा के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दिया है कि वे उनके नाम, तस्वीर और पहचान के कथित दुरुपयोग से जुड़ी सामग्री पर तय समयसीमा में कार्रवाई करें।

यह मामला डिजिटल युग में सार्वजनिक हस्तियों के अधिकारों से जुड़ा एक अहम कानूनी उदाहरण माना जा रहा है।

क्या है पूरा मामला

Sunil Gavaskar की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया और कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर उनके नाम और तस्वीर का बिना अनुमति इस्तेमाल किया जा रहा है। कई जगह उनके नाम से फर्जी बयान, भ्रामक टिप्पणियां और गलत संदर्भों में कंटेंट प्रसारित किया गया, जिससे उनकी छवि और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचने की आशंका है।

याचिका में यह भी कहा गया कि इस तरह का कंटेंट न केवल उनकी पहचान का दुरुपयोग है, बल्कि यह उनके संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।

दिल्ली हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति, खासकर सार्वजनिक हस्ती के नाम, छवि और पहचान का अनधिकृत व्यावसायिक या भ्रामक इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है।

अदालत ने निर्देश दिए कि:

  • Sunil Gavaskar की ओर से आपत्तिजनक URLs की सूची संबंधित डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को सौंपी जाएगी
  • सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ को इन लिंक्स पर निर्धारित समय के भीतर कार्रवाई करनी होगी
  • यदि किसी लिंक पर आपत्ति हो, तो प्लेटफॉर्म को इसका कारण स्पष्ट करना होगा

मामले की अगली सुनवाई निर्धारित तारीख पर होगी।

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व्यक्तित्व अधिकार क्या होते हैं

व्यक्तित्व अधिकार (Personality Rights) का अर्थ है किसी व्यक्ति के:

  • नाम
  • फोटो या वीडियो
  • आवाज
  • पहचान और सार्वजनिक छवि

का बिना अनुमति इस्तेमाल न किया जाना। भारतीय अदालतें पहले भी यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि इन अधिकारों का उल्लंघन निजता और प्रतिष्ठा दोनों पर असर डालता है

पहले भी आ चुके हैं ऐसे मामले

भारत में इससे पहले कई चर्चित हस्तियों ने व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। हाईकोर्ट्स ने कई मामलों में यह माना है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी, भ्रामक या व्यावसायिक कंटेंट को रोका जाना जरूरी है।

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, Sunil Gavaskar का यह मामला क्रिकेट जगत से जुड़ी पहली बड़ी याचिकाओं में से एक है, जिससे आगे चलकर अन्य खिलाड़ियों और खेल हस्तियों को भी कानूनी रास्ता मिल सकता है।

डिजिटल दौर में क्यों अहम है यह मामला

सोशल मीडिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक जैसी तकनीकों के बढ़ते उपयोग के कारण किसी भी व्यक्ति की पहचान का दुरुपयोग पहले से कहीं आसान हो गया है। ऐसे में अदालतों की भूमिका और जिम्मेदारी भी बढ़ गई है।

यह मामला इस बात को रेखांकित करता है कि:

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों के दुरुपयोग में फर्क किया जाना जरूरी है
  • झूठे या व्यावसायिक लाभ के लिए बनाए गए कंटेंट पर रोक जरूरी है
  • सार्वजनिक हस्तियों की प्रतिष्ठा की रक्षा भी कानून का अहम हिस्सा है

विशेषज्ञों की राय

कानूनी जानकारों का मानना है कि यह आदेश डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि वे केवल मध्यस्थ बनकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। यदि उन्हें उल्लंघन की जानकारी दी जाती है, तो समय पर कार्रवाई करना उनकी कानूनी जिम्मेदारी है।

निष्कर्ष

Sunil Gavaskar का यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की रक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह डिजिटल भारत में व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत मिसाल भी बन सकता है। आने वाले समय में यह फैसला सोशल मीडिया नियमन और सार्वजनिक हस्तियों के अधिकारों को नई दिशा दे सकता है।

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