हब्बल्ली (कर्नाटक): शहर की स्वच्छता व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले कचरा ढुलाई कर्मियों ने ठेका प्रणाली (Contract System) को समाप्त करने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन छेड़ने का ऐलान किया है। कर्नाटक प्रगतिशील कचरा ढुलाई वाहन चालक और हेल्पर संघ (AICCTU) के नेतृत्व में कर्मचारी 17 दिसंबर को “बेलगावी चलो” रैली निकालकर सरकार पर दबाव बनाने की तैयारी में हैं।
सैकड़ों कर्मियों के जुटने की तैयारी, सुवर्ण सदन तक मार्च
संघ के अनुसार, इस आंदोलन में 500 से अधिक कचरा ढुलाई ड्राइवर, हेल्पर और लोडर शामिल होंगे। यह रैली बेलगावी स्थित सुवर्ण सदन तक पहुंचेगी, जहां राज्य सरकार का शीतकालीन सत्र आयोजित हो रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि कई वर्षों से मांगें लंबित हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से ठोस कदम नहीं उठाए गए।
क्या है कर्मियों की मुख्य मांग
कचरा ढुलाई कर्मियों की सबसे बड़ी मांग ठेका प्रणाली को पूरी तरह समाप्त कर नियमित नियुक्ति की है। कर्मचारियों का कहना है कि वे नगर निगम के लिए स्थायी कार्य करते हैं, फिर भी उन्हें अस्थायी और असुरक्षित स्थिति में रखा गया है।
मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:
- सभी कचरा ढुलाई कर्मियों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा
- ठेकेदारों के माध्यम से नियुक्ति प्रणाली समाप्त की जाए
- 2012 के हाईकोर्ट आदेश के अनुसार वेतन सीधे बैंक खाते में जमा
- समान कार्य के लिए समान वेतन का नियम लागू किया जाए
वेतन और सामाजिक सुरक्षा को लेकर भी नाराजगी
संघ का आरोप है कि वर्तमान ठेका व्यवस्था में कर्मियों को न तो समय पर वेतन मिलता है और न ही सामाजिक सुरक्षा। कर्मचारियों ने मांग की है कि:
- न्यूनतम 42,000 रुपये मासिक वेतन तय किया जाए
- हर महीने की 7 तारीख तक वेतन भुगतान अनिवार्य हो
- स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि और पेंशन जैसी सुविधाएं दी जाएं
- कार्य के दौरान दुर्घटना होने पर मुआवजा और सुरक्षा सुनिश्चित हो
आवास और बच्चों की शिक्षा भी बड़ा मुद्दा
कर्मियों ने सरकार से यह भी मांग की है कि लंबे समय से सेवा दे रहे कर्मचारियों को आवासीय भूखंड उपलब्ध कराए जाएं। इसके साथ ही उनके बच्चों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता और छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं लागू की जाएं, ताकि सफाई कर्मियों का सामाजिक और आर्थिक भविष्य सुरक्षित हो सके।
संघ का आरोप: ठेका प्रणाली से हो रहा शोषण
AICCTU के नेताओं का कहना है कि ठेका प्रणाली के कारण:
- कर्मचारियों का शोषण होता है
- वेतन का बड़ा हिस्सा ठेकेदारों के पास चला जाता है
- नौकरी की कोई स्थिरता नहीं रहती
- कर्मचारी हमेशा हटाए जाने के डर में काम करते हैं
संघ का दावा है कि यह व्यवस्था न केवल श्रमिकों के अधिकारों के खिलाफ है, बल्कि सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है।
सरकार और नगर निगम की भूमिका पर सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि कचरा प्रबंधन जैसी आवश्यक सेवाओं में अस्थायी श्रमिक व्यवस्था लंबे समय तक टिकाऊ नहीं हो सकती। नगर निगमों को स्थायी मानव संसाधन और जवाबदेह व्यवस्था की आवश्यकता है। हालांकि प्रशासन की ओर से समय-समय पर आश्वासन दिए गए हैं, लेकिन धरातल पर बदलाव सीमित ही रहा है।
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स्वच्छता व्यवस्था और शहर पर सीधा असर
कचरा ढुलाई कर्मियों की समस्याएं सीधे तौर पर शहर की स्वच्छता से जुड़ी हैं। यदि कर्मचारियों में असंतोष बढ़ता है या कामकाज प्रभावित होता है, तो इसका असर आम नागरिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। ऐसे में यह मुद्दा केवल श्रमिकों का नहीं, बल्कि पूरे शहर की प्राथमिकता बन जाता है।
निष्कर्ष
कचरा ढुलाई कर्मियों का यह आंदोलन केवल वेतन या नौकरी का सवाल नहीं है, बल्कि सम्मानजनक रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और स्थायी व्यवस्था की मांग है। अब यह देखना अहम होगा कि राज्य सरकार और नगर निगम इस आंदोलन को गंभीरता से लेते हुए ठेका प्रणाली पर पुनर्विचार करते हैं या नहीं।