सरकारी समर्थन के बाद सुर्खियों में आई Zoho, लेकिन उठने लगे सवाल — क्या ‘स्वदेशी टेक’ मॉडल टिक पाएगा?

भारतीय ‘देसी टेक कंपनी’ Zoho एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में कई केंद्रीय मंत्रियों ने Zoho के प्रोडक्ट्स का समर्थन किया है, जो ‘स्वदेशी अभियान’ के तहत बढ़ती अमेरिकी टैरिफ तनातनी के बीच एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। लेकिन इसी बीच Zoho को लेकर आलोचना और सवाल भी उठने लगे हैं, खासकर जब यह कंपनी Microsoft, Meta और Google जैसे वैश्विक दिग्गजों को चुनौती देने की कोशिश कर रही है।

स्वदेशी समर्थन के बीच फिर चर्चा में Zoho

पिछले महीने केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की एक साधारण दो पंक्तियों की X (ट्विटर) पोस्ट ने Zoho के फाउंडर श्रीधर वेम्बू की कंपनी को फिर से चर्चा में ला दिया। इसके बाद से कई मंत्रियों ने Zoho और इसके सॉफ्टवेयर टूल्स का समर्थन किया है।

यह समर्थन ऐसे समय आया है जब भारत स्वदेशी टेक इकोसिस्टम को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है। चीन और अमेरिका की तरह भारत भी अब अपनी टेक्नोलॉजी कंपनियों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।

सरकार ने अपनाया Zoho का रास्ता

22 सितंबर को अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि वे अपने मंत्रालय में दस्तावेज़, स्प्रेडशीट और प्रेजेंटेशन के लिए अब Zoho प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करेंगे। उन्होंने हाल ही में एक कैबिनेट ब्रीफिंग भी Zoho Show के जरिए की — जो Microsoft PowerPoint का स्वदेशी विकल्प है।

उन्होंने पोस्ट में लिखा — “मैं अब Zoho का उपयोग कर रहा हूं… प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वदेशी अभियान में शामिल हों और देशी उत्पादों व सेवाओं को अपनाएं।”

इसके बाद शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान समेत कई अन्य नेताओं ने Arattai ऐप (Zoho का WhatsApp प्रतिद्वंदी) को समर्थन दिया। यह ऐप 2021 में लॉन्च हुआ था और अब तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

‘Made in India’ ऐप Arattai की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता

Arattai, जिसका मतलब तमिल में ‘कैज़ुअल बातचीत’ होता है, ने कुछ ही दिनों में 7.5 मिलियन डाउनलोड्स का आंकड़ा पार कर लिया है। यह Apple App Store के टॉप पर पहुंच चुका है और जल्द ही Google Play Store के टॉप 100 में आने की उम्मीद है।
Zoho के CEO श्रीधर वेम्बू के अनुसार, ऐप के साइन-अप्स में सिर्फ तीन दिनों में 100 गुना की वृद्धि दर्ज की गई है।

इसके साथ ही शिक्षा मंत्रालय ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे Microsoft Office और Google Workspace के बजाय Zoho के टूल्स का उपयोग करें।

आलोचक बोले — ‘सुरक्षा और समन्वय पर सवाल’

Zoho को लेकर अचानक आए सरकारी समर्थन ने सोशल मीडिया पर बहस और आलोचना भी शुरू कर दी है।
कई यूजर्स ने सवाल उठाए हैं कि एक मंत्री अकेले कैसे अपने विभाग का पूरा टेक इकोसिस्टम Zoho पर शिफ्ट कर सकते हैं, जबकि बाकी मंत्रालय अभी भी विदेशी सॉफ्टवेयर पर निर्भर हैं।

एक यूजर ने लिखा —
“एक मंत्री अकेले कैसे Zoho पर जा सकते हैं जबकि बाकी सरकार अभी पुरानी प्रणालियों पर है? सुरक्षा और डेटा इंटीग्रेशन को लेकर क्या प्रोटोकॉल है?”

क्या भारत ‘देसी टेक क्रांति’ के लिए तैयार है?

भारत पहले भी Hike और Koo जैसे स्वदेशी प्लेटफॉर्म्स के उत्थान और पतन का अनुभव कर चुका है। सरकार ने इस बार Zoho को शुरुआती स्तर पर सही दिशा में बढ़ाया है, लेकिन दीर्घकालिक समर्थन और स्थायित्व ही इसकी असली परीक्षा होगी।

निष्कर्ष:
Zoho का सरकारी समर्थन भारत के स्वदेशी डिजिटल आत्मनिर्भरता मिशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन सवाल यही है — क्या यह समर्थन लंबे समय तक बना रहेगा और क्या भारत अपने ‘Made in India’ टेक इकोसिस्टम को वास्तव में स्थायी रूप से खड़ा कर पाएगा?

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